Definition of Business in Hindi
Business शब्द का हिंदी में अर्थ होता है व्यापार । व्यापार का सामान्य अर्थ है ऐसा कार्य जो लाभ के लिए किया गया हो | व्यवसाय एक जटिल प्रक्रिया है जिसमे वस्तुओं और सेवाओं की उत्पादन, वितरण, बिक्री आदि कार्य करने होते है |
[caption id="attachment_62" align="alignleft" width="250"] Definition of business in hindi[/caption]
इसका उद्देश्य खरीदारों की विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करना और लाभान्वित करना होता है । इन उत्पादक कार्यों का प्रबंधन उद्यमियों ( businessman ) और व्यक्तिगत मालिकों के प्रभारी के रूप में होता है, जो उद्योगों को व्यवस्थित और निर्देशित करने के लिए जिम्मेदार होते हैं,और बदले में आर्थिक लाभ प्राप्त करने की आशा करते है ।
व्यापार के उद्देश्य ( Objectives of Business ) :- सामान्य तौर पर ऐसा माना जाता है कि किसी भी व्यापार का मुख्य उद्देश्य होता है लाभ अर्जित करना । लाभ कमाने के अलावा व्यापार के अन्य उद्देश्य निम्नलिखित है ।
i ) Social Objectives ( सामाजिक उद्देश्य ) :- व्यापारी समाज के संसाधनों का उपयोग करके काम करता है , इसलिए सभी व्यापारिक संगठनों का यह दायित्व कि वह समाज कल्याण के लिए संभावित योगदान दे । सभी व्यवसायिक संस्थानों को अपने उत्पाद एवं सेवाओं की गुणवत्ता को बनाए रखना चाहिए और निष्पक्ष व्यापार प्रथाओं को अपनाना चाहिए प्रथाओं को अपनाना चाहिए ।
ii ) Human Objectives ( मानव उद्देश्य ) :- सभी व्यापारिक संगठनों के मुख्य उद्देश्य में से एक है अपने सभी कर्मचारियों एवं ग्राहकों की अपेक्षाओं और जरूरतों की आपूर्ति जैसे कि कर्मचारी का सामाजिक , आर्थिक और मनोवैज्ञानिक संतुष्टि, मानव संसाधनों का विकास इत्यादि ।
iii ) National Objectives ( राष्ट्रीय उद्देश्य ) :- प्रत्येक व्यवसाय किसी राष्ट्र का एक हिस्सा होता है, इसलिए व्यवसाय के कुछ राष्ट्रीय उद्देश्य भी होते हैं जैसे कि नागरिकों के लिए रोजगार उपलब्ध करवाना, सरकारी खजाने को राजस्व अर्जित करवाना, वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाना , सामाजिक न्याय को बढ़ावा देना इत्यादि । देश के इन लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए व्यवसायिक गतिविधियों का संचालन किया जाना चाहिए ।
iv ) Global Objectives ( वैश्विक उद्देश्य ) :- आज के इस ग्लोबलाइजेशन के समय में सभी देश अपने यहां निर्मित होने वाले उत्पादों को किसी दूसरे देश को भेजते हैं और दूसरे देश में निर्मित होने वाले उत्पादों को आवश्यकतानुसार अपने देश में मंगवाते हैं । ऐसे में सभी व्यवसायिक संगठनों की एक वैश्विक जिम्मेदारी भी बनती है , क्योंकि इनके द्वारा बनाया जाने वाला उत्पाद या दिए जाने वाले सेवाओं को किसी दूसरे देश के द्वारा भी उपयोग में लिया जा सकता है ।
व्यवसाय के प्रकार / Vyapar ke Prakar ( Type Of Business in Hindi ) : -
i) Sole Proprietorship :- एक Sole Proprietorship एक ऐसे व्यवसाय को कहतें है जो पूरी तरह से एक व्यक्ति के स्वामित्व और नियंत्रण में होता है | मालिक अकेले व्यवसाय संचालित करता है और कर्मचारियों को काम पर रख सकता है। वह व्यवसाय की सभी संपत्तियों का एकल मालिक होता है | उसे आमतौर पर अपने व्यवसाय से होने वाले सम्पूर्ण लाभ को प्राप्त करने का अधिकार होता है | इसके उलट अगर व्यवसाय में कोई हानि हो जाए तो वो सम्पूर्ण हानि भी उसे अपनी जेब से ही उठाना होगा | इसके अलावा अगर व्यवसाय का कोई धन बकाया है जो लेनदारों को चुकाना है और व्यवसाय की पास उतने पैसे नहीं है तो लेनदार चाहें तो उसके मालिक से वो रकम वसूल सकतें है | मालिक को अपने निजी संपत्ति को बेच कर भी उस रकम को चुकाना होगा |
ii) Partnership :- एक Partnership दो या दो से अधिक लोगों के स्वामित्व वाला व्यवसाय है। अर्थात सारे Partner एक निर्धारित राशि व्यापार में निवेश करतें है और एक निर्धारित अनुपात में व्यवसाय में होने वाले लाभ या हानि को आपस में बांटते है | किसी भी महत्वपूर्ण व्यापार से संबंधित निर्णय लेने के लिए सभी Partners की सहमति लगती है | इसके अलावा व्यवसाय की सभी संपत्तियों के सारे Partners आंशिक रूप में स्वामी होतें है | व्यवसाय द्वारा किए गए ऋणों के लिए सारे Partners व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी होतें है | अर्थात उन्हें को अपने निजी संपत्ति को बेच कर भी उस रकम को चुकाना होगा |
यहां इस बात पर ध्यान देना आवशयक है की अगर Sole Proprietorship में मालिक किसी कर्मचारी या मैनेजर को रखता है और उसे व्यवसाय में होने वाले लाभ का एक हिस्सा देता है तो उसे Partner नहीं कहा जाएगा क्यूंकि उस कर्मचारी या मैनेजर ने व्यापार में कोई राशि निवेश नहीं की है और न ही वो व्यवसाय की संपत्तियों का स्वामी है |
iii) Company:- एक Comapny की कुछ विशेषताएं होतीं है | एक Comapny अपने शेयरधारकों, निदेशकों, प्रमोटरों आदि से अलग मन जाता है | दूसरे शब्दों में एक Comapny एक कृत्रिम व्यक्ति है जो अपने नाम पर संपत्ति खरीद सकता है , अपने नाम पर केस लड़ सकता है और सामान्य परिस्थितियों में कंपनी के मालिक हैं, कंपनी के किसी भी काम के लिए जवाबदेह या जिम्मेदार नहीं होतें है | अगर कंपनी का कोई धन बकाया है तो लेनदार उसे केवल कंपनी के संपत्तियों को बेचकर ही वसूल सकते हैं | उनके पास कंपनी के मालिक के संपत्ति को छूने का कोई अधिकार नहीं है |
कंपनी मुख्यतः 2 प्रकार के हो सकतें है :
एक Public Comapny का स्वामित्व आंशिक से आम जनता के पास होता है | कोई भी चाहे तो एक मूल्य चुकाकर उस कपनी का आंशिक रूप से स्वामी बन सकता है |
हालाँकि किसी Private Comapny में आम जनता निवेश नहीं कर सकती और उन्हें किसी भी कंपनी की जानकारी को आम जनता के सामने प्रकट करने की आवश्यकता नहीं है | यह निजी व्यक्तियों के स्वामित्व और नियंत्रण में रहती है |
iv) Cooperative :- एक संयुक्त रूप से स्वामित्व वाला व्यवसाय या उद्यम है जहां बहुत से लोग अपने उत्पाद को एकजुट करके उसका व्यापर करतें है । अमूल आज भारत की सबसे बड़ीसुपरटिवेस में से एक माना जाता है |
[caption id="attachment_62" align="alignleft" width="250"] Definition of business in hindi[/caption]
इसका उद्देश्य खरीदारों की विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करना और लाभान्वित करना होता है । इन उत्पादक कार्यों का प्रबंधन उद्यमियों ( businessman ) और व्यक्तिगत मालिकों के प्रभारी के रूप में होता है, जो उद्योगों को व्यवस्थित और निर्देशित करने के लिए जिम्मेदार होते हैं,और बदले में आर्थिक लाभ प्राप्त करने की आशा करते है ।
व्यापार के उद्देश्य ( Objectives of Business ) :- सामान्य तौर पर ऐसा माना जाता है कि किसी भी व्यापार का मुख्य उद्देश्य होता है लाभ अर्जित करना । लाभ कमाने के अलावा व्यापार के अन्य उद्देश्य निम्नलिखित है ।
i ) Social Objectives ( सामाजिक उद्देश्य ) :- व्यापारी समाज के संसाधनों का उपयोग करके काम करता है , इसलिए सभी व्यापारिक संगठनों का यह दायित्व कि वह समाज कल्याण के लिए संभावित योगदान दे । सभी व्यवसायिक संस्थानों को अपने उत्पाद एवं सेवाओं की गुणवत्ता को बनाए रखना चाहिए और निष्पक्ष व्यापार प्रथाओं को अपनाना चाहिए प्रथाओं को अपनाना चाहिए ।
ii ) Human Objectives ( मानव उद्देश्य ) :- सभी व्यापारिक संगठनों के मुख्य उद्देश्य में से एक है अपने सभी कर्मचारियों एवं ग्राहकों की अपेक्षाओं और जरूरतों की आपूर्ति जैसे कि कर्मचारी का सामाजिक , आर्थिक और मनोवैज्ञानिक संतुष्टि, मानव संसाधनों का विकास इत्यादि ।
iii ) National Objectives ( राष्ट्रीय उद्देश्य ) :- प्रत्येक व्यवसाय किसी राष्ट्र का एक हिस्सा होता है, इसलिए व्यवसाय के कुछ राष्ट्रीय उद्देश्य भी होते हैं जैसे कि नागरिकों के लिए रोजगार उपलब्ध करवाना, सरकारी खजाने को राजस्व अर्जित करवाना, वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाना , सामाजिक न्याय को बढ़ावा देना इत्यादि । देश के इन लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए व्यवसायिक गतिविधियों का संचालन किया जाना चाहिए ।
iv ) Global Objectives ( वैश्विक उद्देश्य ) :- आज के इस ग्लोबलाइजेशन के समय में सभी देश अपने यहां निर्मित होने वाले उत्पादों को किसी दूसरे देश को भेजते हैं और दूसरे देश में निर्मित होने वाले उत्पादों को आवश्यकतानुसार अपने देश में मंगवाते हैं । ऐसे में सभी व्यवसायिक संगठनों की एक वैश्विक जिम्मेदारी भी बनती है , क्योंकि इनके द्वारा बनाया जाने वाला उत्पाद या दिए जाने वाले सेवाओं को किसी दूसरे देश के द्वारा भी उपयोग में लिया जा सकता है ।
व्यवसाय के प्रकार / Vyapar ke Prakar ( Type Of Business in Hindi ) : -
i) Sole Proprietorship :- एक Sole Proprietorship एक ऐसे व्यवसाय को कहतें है जो पूरी तरह से एक व्यक्ति के स्वामित्व और नियंत्रण में होता है | मालिक अकेले व्यवसाय संचालित करता है और कर्मचारियों को काम पर रख सकता है। वह व्यवसाय की सभी संपत्तियों का एकल मालिक होता है | उसे आमतौर पर अपने व्यवसाय से होने वाले सम्पूर्ण लाभ को प्राप्त करने का अधिकार होता है | इसके उलट अगर व्यवसाय में कोई हानि हो जाए तो वो सम्पूर्ण हानि भी उसे अपनी जेब से ही उठाना होगा | इसके अलावा अगर व्यवसाय का कोई धन बकाया है जो लेनदारों को चुकाना है और व्यवसाय की पास उतने पैसे नहीं है तो लेनदार चाहें तो उसके मालिक से वो रकम वसूल सकतें है | मालिक को अपने निजी संपत्ति को बेच कर भी उस रकम को चुकाना होगा |
ii) Partnership :- एक Partnership दो या दो से अधिक लोगों के स्वामित्व वाला व्यवसाय है। अर्थात सारे Partner एक निर्धारित राशि व्यापार में निवेश करतें है और एक निर्धारित अनुपात में व्यवसाय में होने वाले लाभ या हानि को आपस में बांटते है | किसी भी महत्वपूर्ण व्यापार से संबंधित निर्णय लेने के लिए सभी Partners की सहमति लगती है | इसके अलावा व्यवसाय की सभी संपत्तियों के सारे Partners आंशिक रूप में स्वामी होतें है | व्यवसाय द्वारा किए गए ऋणों के लिए सारे Partners व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी होतें है | अर्थात उन्हें को अपने निजी संपत्ति को बेच कर भी उस रकम को चुकाना होगा |
यहां इस बात पर ध्यान देना आवशयक है की अगर Sole Proprietorship में मालिक किसी कर्मचारी या मैनेजर को रखता है और उसे व्यवसाय में होने वाले लाभ का एक हिस्सा देता है तो उसे Partner नहीं कहा जाएगा क्यूंकि उस कर्मचारी या मैनेजर ने व्यापार में कोई राशि निवेश नहीं की है और न ही वो व्यवसाय की संपत्तियों का स्वामी है |
iii) Company:- एक Comapny की कुछ विशेषताएं होतीं है | एक Comapny अपने शेयरधारकों, निदेशकों, प्रमोटरों आदि से अलग मन जाता है | दूसरे शब्दों में एक Comapny एक कृत्रिम व्यक्ति है जो अपने नाम पर संपत्ति खरीद सकता है , अपने नाम पर केस लड़ सकता है और सामान्य परिस्थितियों में कंपनी के मालिक हैं, कंपनी के किसी भी काम के लिए जवाबदेह या जिम्मेदार नहीं होतें है | अगर कंपनी का कोई धन बकाया है तो लेनदार उसे केवल कंपनी के संपत्तियों को बेचकर ही वसूल सकते हैं | उनके पास कंपनी के मालिक के संपत्ति को छूने का कोई अधिकार नहीं है |
कंपनी मुख्यतः 2 प्रकार के हो सकतें है :
एक Public Comapny का स्वामित्व आंशिक से आम जनता के पास होता है | कोई भी चाहे तो एक मूल्य चुकाकर उस कपनी का आंशिक रूप से स्वामी बन सकता है |
हालाँकि किसी Private Comapny में आम जनता निवेश नहीं कर सकती और उन्हें किसी भी कंपनी की जानकारी को आम जनता के सामने प्रकट करने की आवश्यकता नहीं है | यह निजी व्यक्तियों के स्वामित्व और नियंत्रण में रहती है |
iv) Cooperative :- एक संयुक्त रूप से स्वामित्व वाला व्यवसाय या उद्यम है जहां बहुत से लोग अपने उत्पाद को एकजुट करके उसका व्यापर करतें है । अमूल आज भारत की सबसे बड़ीसुपरटिवेस में से एक माना जाता है |
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